पनामा पेपर्स लीक मामले ने दुनिया भर के पैसे वालों की नींद उड़ा रखी है। दस्तावेजों की जांच-परख चल रही है, पता नहीं कब किसके नाम का खुलासा हो जाए। खैर ये दस्तावेज एक साल पहले ही मीडिया में लीक हो चुके थे।
इन दस्तवाजों को जॉन डोए (काल्पनिक नाम) ने जर्मनी के एक अखबार, जिसका नाम Süddeutsche Zeitung है, के खोजी पत्रकार बाज्टियन ऑबरमायर (Bastian Obermayer) को दिए थे। बाद में इन दस्तावेजों को International Consortium of Investigative Journalists (ICIJ) के साथ सांझा किया गया।
पनामा कॉर्पोरेट सेवा प्रदाता मोसेक फ़ोनसेका ने अमीरों के सारे काले कारनामों पर पानी डालने का काम किया है। पनामा पत्रों के 11.5 लाख लीक दस्तावेजों से ये बात साबित होती है कि कंपनी द्वारा सूचीबद्ध सरकारी अधिकारियों सहित कैसे धनी व्यक्तियों और 214,000 से अधिक विदेशी कंपनियों के पैसे ठिकाने लगाए है। सार्वजनिक जांच से कंपनी के पैसे छिपाने का काला कारनामा सामने आ रहा है। पनामा आज से टेक्स हेवन के रूप में नहीं जाना जाता इसका इतिहास काफी पुराना है।
आर्थिक अवसरों की तलाश पनामा ने सबसे पहले देश में 1919 से जहाजों को रजिस्टर करने से शुरूआत की। पनामा ने जहाजों को तेल का व्यापार करने की अनुमति दी। सेंट्रल अमेरिका में होने की वजह से पनामा में अधिकतर व्यापारी अमेरिका और आस-पास के देशों के थे। अमेरिका मे कर चोरी पनामा की व्यापार योजनाओं की वजह से आसान हो गई थी। जब वॉल स्ट्रीट ने इस बात की छान-बीन की तो उन्हे तथ्यों का पता चला।
दरअसल पनामा में व्यापार करने के लिए बहुत ही सरल कानून बनाए गए हैं और कारोबारियों और कंपनियों की जानकारी गुप्त रखी जाती है। अगर कोई इस कानून का उल्लंघन करता है तो ऐसा आदमी 50,000 हजार डॉलर के साथ-साथ सजा का भी भागी बनता है।
पनामा एक अपतटीय अधिकार क्षेत्र के रूप विकसित किया गया है इस देश में 370,000 अंतरराष्ट्रीय व्यापार कंपनियों, ने रजिस्ट्रेशन करवाया है जो ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह और हांगकांग के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है। पनामा बैंकिंग प्रणाली का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान तीन गुना अधिक है। और वित्तीय क्षेत्र में ये योगदान कि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग आठ प्रतिशत है।
अपनी कठोर वित्तीय योजनाओं के चलते पनाम माफियाओं के पैसे जमा करने का गढ़ बन गया है। सारा काला धन यहां सुऱक्षित रखा जा रहा है।